गोहरिमाफी निवासी अधिवक्ता ने सरकार पर तंज कसते हुए ।गोहरिमाफी बाढ़ समस्या को बताया सोने का अंडा देने वाली मुर्गी ।
गोहरिमाफी निवासी अधिवक्ता ने अपने एक लेख के माध्यम से सरकार पर तंज कसते हुए गोहरिमाफी बाढ़ समस्या को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बताया उनका कहना है कि सरकार गोहरिमाफी बाढ़ सुरक्षा का स्थाई समाधान नही करना चाहती क्योकि यदि स्थाई समाधान हुआ तो हर साल होने वाले लाखों रुपये का बजट आना बंद हो जाएगा और कुछ लोगो की जेबें गर्म नही हो पाएगी ।
पढ़िए उनका लेख -
गौहरिमाफी बाढ़ समस्या ।
एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी
पिछले कई वर्षों से बाढ़ की मार झेल रहे गाँव गौहरिमाफी की कहानी शायद ही किसी से छिपी हुई हो या कोई इस गाँव की कहानी से अनजान हो। हर साल की तरह आज भी गौहरिमाफी में पहली बाढ़ की झलक देखने को मिल गयी। इस बार भी सरकारी बाढ़ सुरक्षा अस्थायी इंतज़ाम भर - भराकर बहते हुए नज़र आ गए। गौहरिमाफी आबादी सीमा से लगभग 1.5 किमी दूर बहने वाली सौंग नदी आज किसानों के खेतों तक पहुंच गई ।
जहां गौहरिमाफी वासियों को आज से नींद नही आने वाली वहीं अब बाढ़ के दौरान सरकारी फाइलों में आपदा फण्ड के नाम पर लाखों करोड़ो का खर्च दिखाकर सरकारी कागज़ों के पेट भरकर जो अस्थाई बाढ़ सुरक्षा कार्य किये जायेंगे जिन सुरक्षा कार्यो का लाभ कहीं नही मिलने वाला है बेहतर होता कि समय रहते आपदा फण्ड या अन्य स्रोतों से कुछ धन स्वीकृत करवाकर स्थाई (पक्के) बाढ़ सुरक्षा इंतज़ाम किये जाते। हर साल यही चलता है। समय रहते सरकार और सरकारी नुमाइंदे नींद से जाग नही पाते और जब बाढ़ उफान पर होती है तभी सरकार आपदा फण्ड जारी कर बाढ़ सुरक्षा के ऐसे दावे करती है जैसे बचपन में परियो की कहानी में परियां जादू की छड़ी घुमाकर सब कुछ ठीक कर देती थी।
अपने गाँव गौहरिमाफी को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी इसलिए कहता हूं क्योंकि मुझे अपने गाँव के प्रति सरकार का रवैया देखकर सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहानी याद आती है जिसमें उस मुर्गी का मालिक यह सोचकर कि जब मुर्गी रोज़ सोने का अंडा देती है तो उसके पेट में कितने अंडे होंगे और सोने के बहुत सारे अंडों के लालच में मुर्गी को मार देता है नतीज़ा उसे फिर कभी कुछ नही मिलता। गौहरिमाफी बाढ़ सुरक्षा की स्तिथि भी उस सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहानी से मिलती जुलती है। यदि एक बार में ही स्थाई बाढ़ सुरक्षा इंतज़ाम कर दिए जाएंगे पक्की दीवार बना दी जाएगी तो हर साल गौहरिमाफी बाढ़ सुरक्षा के नाम पर लाखों करोड़ों का बजट जो कि मात्र नदी की धारा बदलने अस्थाई, वैकल्पिक तार जाल बिछाने के नाम पर खर्च किया जाता है और जो मलाई हर साल गौहरिमाफी बाढ़ सुरक्षा के नाम पर खाने को मिल जाती है उस पर पूर्ण रूप से रोक लग जाएगी।पिछले 20 सालों में जितना सरकारी बजट हर साल अस्थाई बाढ़ सुरक्षा कार्यो में अकेले गौहरिमाफी में खर्च किया जा चुका है इतनी राशि में पूरे जिले के बाढ़ सुरक्षा कार्य पक्के तटबंध बनाये जा सकते थे। पर यदि हर साल सोने का अंडा चाहिए तो इसी तरह बाढ़ सुरक्षा के नाम पर करोड़ो के बजट को ठिकाने लगाते रहिये। अस्थाई बाढ़ सुरक्षा इंतज़ाम की नीति पर ही चलते रहिए। क्योंकि यदि स्थायी बाढ़ सुरक्षा की पक्की दीवार बन गई तो हर साल सोने का अंडा देने वाली मुर्गी मर जाएगी।।
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